Poet
Mustafa Mahir
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Back to List of Poets Back to List of Poems हम बुरे हालात में जो मुस्कुराने लग गऐ
सब के सब दुश्मन हमारे छटपटाने लग गऐ ख़्वाब में देखा था तुझको ग़ैर का होते हुऐ अपने हाथों की लकीरें हम जलाने लग गऐ कौन कह देगा कि हैं मेरे पड़ोसी ये नये चार दिन बीते हैं घर में आने जाने लग गऐ आज़माइश से नहीं मैं हूँ परेशाँ इसलिए कैसे कैसे लोग मुझको आज़माने लग गऐ अब कहाँ दिल में मुहब्बत के वो कच्चे घर बचे गाँव की सारी ज़मीं पर कारख़ाने लग गऐ बूढे़ माँ और बाप को बच्चों ने जब ठुकरा दिया दर बदर फिरते थे अच्छा है ठिकाने लग गऐ |
***सहमति पत्र***
1. मैं साहित्यिक वेबसाइट www.niharikanjali.com को अपनी साहित्यिक रचनाएं जो कि मेरी स्वयं की मौलिक रचनाएं हैं, प्रकाशित करने की सहमति प्रदान करता / करती हूँ। इसके लिए उपरोक्त वेबसाइट से मैं भविष्य में कभी भी अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए किसी भी प्रकार के भुगतान की मांग नहीं करूंगा / करूंगी।
2. विवाद की स्थिति में रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने में वेबसाइट www.niharikanjali.com की किसी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी एवं रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने का प्रथम एवं अंतिम कर्तव्य मेरा स्वयं का ही होगा।
3. उपरोक्त वेबसाइट से संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद का न्यायिक क्षेत्र कानपुर अथवा दिल्ली ही होगा।
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