Poet
Mustafa Mahir
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Back to List of Poets Back to List of Poems बहुत कमज़र्फ हाथों में कटारें आ गयीं देखो
गिरावट की तरफ सारी मेयारें आ गयीं देखो पनाहों में तुम्हारी मैं ठहरता और भी लेकिन मुझे मेरे मराहिल से पुकारें आ गयीं देखो मेरे अन्दर की जब से बुझदिली की सांस टूटी है मेरी तलवार में खुद तेज़ धारें आ गयीं देखो हुई क्या शाम यादें भी तेरी दिल में उतर आयीं बसेरे को परिंदों की कतारें आ गयीं देखो उसूलों की लिए गठरी फकत हम हीं रहे पैदल मुहल्ले में कई लोगों की कारें आ गयीं देखो किसी का नाम खूं से लिख गया था एक दीवाना मेरी दीवार में कितनी दरारें आ गयीं देखो |
***सहमति पत्र***
1. मैं साहित्यिक वेबसाइट www.niharikanjali.com को अपनी साहित्यिक रचनाएं जो कि मेरी स्वयं की मौलिक रचनाएं हैं, प्रकाशित करने की सहमति प्रदान करता / करती हूँ। इसके लिए उपरोक्त वेबसाइट से मैं भविष्य में कभी भी अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए किसी भी प्रकार के भुगतान की मांग नहीं करूंगा / करूंगी।
2. विवाद की स्थिति में रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने में वेबसाइट www.niharikanjali.com की किसी प्रकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी एवं रचनाओं की मौलिकता सिद्ध करने का प्रथम एवं अंतिम कर्तव्य मेरा स्वयं का ही होगा।
3. उपरोक्त वेबसाइट से संबंधित किसी भी प्रकार के विवाद का न्यायिक क्षेत्र कानपुर अथवा दिल्ली ही होगा।
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