Lalit Tasleem
नाम-
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ललित तस्लीम
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जन्मस्थान-
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भारत
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शिक्षा-
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कम्प्यूटर विज्ञान में परा-स्नातक, पीएच०डी०, डी०एससी०
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सम्प्रति-
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सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कार्यरत
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लेखन विधा-
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गीत, ग़ज़ल, कविता, मुक्तक
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प्रकाशित रचनायें-
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तुम्हारे फोन की आशा में... (वर्ष 2010) [भारत की सबसे तेज़ 1,00,000 प्रतियों की बिक्री का आंकड़ा छूने वाली हिन्दी काव्य पुस्तक- लिम्का बुक रिकॉर्ड ]
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विशेष-
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पद्मश्री नीरज के अनुसार डॉ. ललित हिन्दी साहित्य में इन्टरनेटी एवं मोबाइली काव्यधारा के जनक हैं
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जीवन परिचय-
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ललित तस्लीम हिंदी-उर्दू के वर्तमान समय के सबसे उदीयमान कवि एवं शायर हैं। जहाँ एक ओर श्रृंगार उनकी रचनाओं का प्रधान पक्ष है वहीं दूसरी ओर उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना का स्वर सामाजिक वर्जनाओं एवं विषमताओं पर कुठाराघात करता हुआ दिखाई पड़ता है। पद्मश्री नीरज के अनुसार "डॉ॰ ललित तस्लीम हिन्दी साहित्य में इन्टरनेटी एवं मोबाइली काव्यधारा के जनक हैं एवं उनकी रचनाधर्मिता इक्कीसवीं सदी में हिन्दी कविता की परिवर्तनता व परिवर्धनता की परिचायक है।"
ललित तस्लीम का जन्म भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के एक ज़मींदार परिवार में हुआ था। प्रारम्भिक शिक्षा अपने गृहनगर कानपुर से प्राप्त करने के पश्चात् ललित आगे की पढाई के लिए बरेली चले गए। उनका बरेली आगमन ही उनकी साहित्यिक यात्रा में मील का प्रथम पत्थर साबित हुआ। बरेली कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष गुरुदेव डॉ॰ भगवान शरण भारद्वाज, योगकेंद्र एवं दर्शनशास्त्र के विभागाध्यक्ष आचार्य ए.सी. त्रिपाठी के सानिध्य में रहकर ललित ने हिंदी-उर्दू के भाषिक-अनुप्रयोगों का बारीकी से अध्यन किया। एकलव्य के लिए गुरु द्रोण समान पद्मश्री गोपालदस नीरज और वसीम बरेलवी ललित के लिए हिंदी व उर्दू रचनाधर्मिता के महागुरु सिद्ध हुए। फिर भी इन सबसे इतर यदि ललित को, 'ललित तस्लीम' बनाने का श्रेय जाता है तो वो निश्चित रूप से जाता है डॉ॰ राहुल अवस्थी को। बतौर ललित डॉ॰ राहुल अवस्थी उनकी कविताई की धुरी हैं। राहुल अवस्थी द्वारा दिया गया कविता का तकनीकी ज्ञान ललित को आने वाले समय में मोबाइल युग की कविता का पुरस्कर्ता कवि सिद्ध कर देगा हो सकता है कि ये बात शायद खुद राहुल अवस्थी ने भी कभी सोची तक न हो।
बरेली कॉलेज से स्नातक करने के बाद ललित ने कानपुर नगर में पुनः कुछ समय के लिए प्रवास किया। वहीं की किसी गुमनाम हवा ने ललित की कविता में ऐसी जादुई जज़ा की रूह पिरोई कि उसके बाद ललित की क़लम ने कई बड़े शायरों की ऊंचाई को बहुत कम उम्र में ही तय कर लिया।
कानपुर नगर के प्रवास के उपरान्त ललित ने ग्रेटर नोएडा के गलगोटिया कॉलेज में एम.सी.ए. में प्रवेश लिया। ग्रेटर नोएडा की भौगोलिक स्थिति ललित की कविताई को भला प्रभावित किये बिना कैसे रह सकती थी। एन.सी.आर. और उत्तर प्रदेश की सीमा पर बसा ये शहर उन हज़ारों धडकनों के तारतम्य को तोड़ने के लिए के लिए सतही ज़मीन तैयार करता था जिन पर रातों की सुदूर सन्नाहट को चीरती हुयी रोमिंग की गाज कभी भी आ गिरती थी। बस यहीं से ललित की मोबायिली काव्यधारा का आगाज़ उन हज़ारों दिलों की आवाज़ बन कर उभरा जिनके वजूद को कभी सेलवन, तो कभी डॉल्फिन, बिन मर्ज़ी के अपने आगोश में ले लिया करता था।
राहुल अवस्थी के शब्दों में, " साहित्य में कम्प्यूटरी और इंटरनेटी भाषा का प्रयोग और विशेषत: कविता में, वह भी आज से आठ-दस साल पहले करने वाले ललित प्रागतिक प्रशंसा के हकदार हैं। ई-टॉप, रिचार्ज, सेलफोन जैसे शब्दों का कविता में प्रयोग जहाँ उनके कैशोर्यकालीन काव्य-उछाह की गवाही देता है वहीं रोमिंग जैसे शब्द को जिस ढंग से उन्होंने प्रयोग कर उसे वृहत्तर आयामों का वरदान दिया है, वह उनकी प्रतिभा की प्रौढ़ता का परिचायक है। "
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